गंड मूल दोष निवारण पूजा

ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्र हैं जिनमे से रेवती, अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल ये सभी गण्डमूल नक्षत्र कहलाते हैं। इन नक्षत्रों के चरण विशेष में उत्पन्न बालक/बालिका के अपने स्वास्थ्य अथवा माता-पिता आदि के लिए अनिष्ट कारी माना जाता है। इनकी शांति के लिए गण्डमूल शांति करवाना आवश्यक होता है। माना जाता है गंडमूल में जन्मे बच्चे के जन्म से लेकर 27 दिनों तक उसके पिता को उसका चेहरा नहीं देखना चाहिए। किसी शिशु का जन्म यदि ऊपर बताए गए छह नक्षत्रों में हुआ हो तो उसे शुभ नहीं माना जाता। माना जाता है गण्डमूल नक्षत्र में जन्मे शिशु को बचपन में स्वास्थ्य एवं व्यक्तित्व से जुडी समस्याएं हो सकती है। यह अपने माता-पिता के स्वास्थ्य के लिए भी परेशानी का कारण बनता है और परिवार में आर्थिक परेशानी होने लगती है। गण्डमूल नक्षत्र में जन्मे शिशु के भाई-बहन भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या से ग्रसित हो सकते हैं।

ऐसी स्थितियों में शिशु केवल अपने स्वयं के जीवन के लिए ही नहीं अपितु अपने समस्त परिवार के लिए भी परेशानी का कारण बनता है। इसलिए अगर किसी शिशु का जन्म रेवती, अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र में होता है तो उसके लिए गण्डमूल दोष निवारण पूजा करवाई जाती है और मूलों को शांत किया जाता है।

गण्डमूल दोष निवारण पूजा

जब कोई शिशु रेवती, अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र में जन्म लेता है तब उसके लिए गण्डमूल शांति की पूजा करवानी चाहिए। इस पूजा से गण्डमूल नक्षत्रों का प्रभाव शिशु के आने वाले जीवन पर नहीं पड़ता।

गण्डमूल दोष निवारण पूजा, शिशु के जन्म लेने के 27 दिन बाद उसी नक्षत्र में (जिस नक्षत्र में शिशु का जन्म होता है) करवाई जाती है। इस पूजा में संबंधित नक्षत्र से जुड़े मंत्र का 11,000 बार जप किया जाता है। पूजा में 27 अलग-अलग जगहों का पानी एकत्रित किया जाता है, 27 अलग-अलग पेड़ की लकड़ियों से हवन किया जाता है।

पूजा होने के बाद 27 पंडितो को दक्षिणा दी जाती है, जातक द्वारा पहने गए वस्त्रो का त्याग करना पड़ता है ,विधिवत बहुत सी सामग्री एकत्र कर हवन पूजन होता है ।  शास्त्रों में वृहत विवरण मूल शांति का उपलब्ध है | यह पूजा जीवन में एक बार अवश्य करानी चाहिए अन्यथा उस व्यक्ति का जीवन बहुत ही कष्टकारी होता है।

बिशेष – यदि आप 27 दिनों में यह पूजा नहीं करवा पाए है तो निराश होने की जरूरत नहीं है |इसकी पूजा 27 माह ,अथवा 27 वर्ष की आयु तक कभी भी करवाई जा सकती है |जिस नक्षत्र पर जन्म होता है उसी नक्षत्र पर ही यह पूजा होती है |इसे सत्तैसा भी कहते है |

क्या असर होता है ,गंड मूल नक्षत्र का ?

ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक नक्षत्र के चरण में जन्मे शिशु पर उसका प्रभाव अलग-अलग तरह से होता है। यहाँ हम चरण के अनुसार गण्डमूल नक्षत्र का फल बता रहे हैं।गंड मूल नक्षत्र का फल हमेशा नुकसान दायक नहीं होता कई बार आशा से अधिक सफलताये देता है |अशुभ फलो की कमी एवं शुभ फलो की प्राप्ति हेतु पूजा अवश्य करवानी चाहिए |लेकिन किसी योग्य पंडित से अन्यथा आशातीत सफलता नहीं मिलती है |

गण्डमूल अश्विनी नक्षत्र का प्रभाव

मेष राशि में अश्विनी नक्षत्र शून्य अंश से प्रारम्भ होकर 13:20 अंश  तक तक रहता है जन्म के समय यदि चंद्रमा 2 : 30 अंशों के मध्य अर्थात प्रथम चरण में स्थित हो तो गण्डमूल नक्षत्र में जन्म माना जाता है। अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर जातक को अपने जीवन काल में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने पर बच्चा पिता के लिए कष्टकारी होता है परन्तु हमेशा नहीं।

प्रथम चरण पिता को शारीरिक कष्ट एवं  हानि।

दूसरे चरण परिवार में सुख शांति 

तीसरे चरण सरकार से लाभ  तथा मंत्री पद का लाभ 

चतुर्थ चरण परिवार एवं जातक को राज सम्मान तथा ख्याति 

गण्डमूल मघा नक्षत्र का प्रभाव

सिंह राशि के आरम्भ के साथ ही मघा नक्षत्र शुरु होता है। परन्तु सिंह राशि में जब चंद्रमा शून्य से लेकर दो अंश और बीस मिनट अर्थात प्रथम चरण में रहता है तब ही गंडमूल नक्षत्र माना गया है।

प्रथम चरण  — माता को कष्ट होता है।

दूसरे चरण –    पिता को कोई कष्ट या हानि  होता है।

तीसरे चरण –  जातक सुखी जीवन व्यतीत करता है।

चौथे चरण –    जातक को धन विद्या का लाभ, कार्य क्षेत्र में स्थायित्व प्राप्त होता है।

गण्डमूल मूल नक्षत्र का प्रभाव

जब चंद्रमा धनु राशि में शून्य से तेरह अंश और बीस मिनट के मध्य स्थित होता है तब यह मूल नक्षत्र में आता है परन्तु जव चन्द्रमा शून्य अंश से तीस मिनट अर्थात प्रथम चरण में हो तो गण्ड मूल में उत्पन्न जातक कहलाता है।

प्रथम चरण –  पिता के जीवन के लिए घातक।

दूसरे चरण माता के लिए अशुभ, को कष्ट।

तीसरे चरण – –धन नाश।

चतुर्थ चरण जातक सुखी तथा समृद्ध जीवन व्यतीत करता है।

गण्डमूल आश्लेषा नक्षत्र का प्रभाव

जब चंद्रमा जन्म के समय कर्क राशि में 16 अंश और 40 मिनट से 30 अंश के मध्य स्थित होता है तब आश्लेषा नक्षत्र कहलाता है। परन्तु जव चन्द्रमा  छब्बीस अंश से चालीस मिनट अर्थात चतुर्थ चरण में हो तो गण्डमूल में उत्पन्न जातक कहलाता है।

प्रथम चरण शांति और सुख मिलेगा।

दूसरे चरण –  धन नाश,बहन-भाईयों को कष्ट।

तृतीय  चरण माता को कष्ट।

चतुर्थ चरण —  पिता को कष्ट, आर्थिक हानि।

गण्डमूल ज्येष्ठ नक्षत्र का प्रभाव

जब चंद्रमा जन्म के समय  वृश्चिक राशि में 16 अंश और 40 मिनट से 30 अंश के मध्य स्थित होता है तब ज्येष्ठ नक्षत्र कहलाता है। परन्तु जव चन्द्रमा  छब्बीस अंश और चालीस मिनट अर्थात चतुर्थ चरण में हो तो गण्डमूल में उत्पन्न जातक कहलाता है।

प्रथम चरण बड़े भाई-बहनों को कष्ट।

दूसरे चरण –  छोटे भाई बहनों के लिए अशुभ।

तीसरे चरण –  माता को कष्ट।

चतुर्थ चरण स्वयं का नाश।

गण्डमूल रेवती नक्षत्र का प्रभाव

मीन राशि में 16 अंश 40 मिनट से 30 अंश तक रेवती नक्षत्र होता है। जिस समय चंद्रमा मीन राशि में 26 अंश और 30  मिनट के मध्य रहता है तो गंडमूल नक्षत्र वाला जातक कहलाता है।

प्रथम चरण  – जीवन सुख और आराम में व्यतीत होगा।

दूसरे चरण मेहनत एवं  बुद्धि से नौकरी में उच्च पद  प्राप्त।

तीसरे चरण –  धन-संपत्ति का सुख के साथ धन हानि  भी।

चतुर्थ चरण -स्वयं के लिए कष्टकारी  होता है।

 

एस्ट्रोगृह की सेवाएस्ट्रो गृह द्वारा आपके शिशु के कल्याण के लिए गंडमूल शांति पूजा करायी जाती है |अगर आप अपने घर में पूजा करवाना चाहते है तो एस्ट्रो गृह के पंडितो के माध्यम से हम आपके कल्याण के लिए पूजा अनुष्ठान घर में आपके करवाते है |पूजन सामग्री एवं समस्त व्यय की व्यवस्था आपको करनी पड़ती है |दक्षिणा एवं समय के लिए astrograh.com@gmail.com  पर आप जानकारी ले सकते है |आप इसे ऑनलाइन करवा सकते है  इस हेतु शिशु का नाम पिता का नाम गोत्र जन्म तिथि ,समय ,स्थान की जानकारी भेजे दूरभास पर आपसे संकल्प लेकर आपके लिए वैदिक रीति से पूजा की जाती है ,जिससे शिशु का कल्याण होता है एवं विपत्तियों से रक्षा होती है |

दक्षिणा -7500.00

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