प्रदोष – व्रत

शुक्‍लपक्ष एवं कृष्‍णपक्ष की प्रदोषकाल की त्रयोदशी ति‍थि को प्रदोषव्रत कहते है। प्रदोष के दिन निरहार रहकर प्रदोषकाल में भगवान्‍ शिव और भगवती पार्वती की पूजा करके पारणा की जाती है। भगवान्‍ शिव और पार्वती की पूजा में मालती, चम्‍पक, उत्‍पल, ( श्‍वेत कमल), कुमुद, कुन्‍द, मदार तथा शमी का महत्‍व अधिक है। बिल्‍वपत्र और तुलसीपत्र को भी प्रदोषव्रत में भगवान्‍ शिव पर अर्पित किया जाता है। कर्पूर, एला ( इलायची ), लौग, सुपारी, ताम्‍बूल, फल और दक्षिणा भी श्रद्धापूर्वक भगवान्‍ शिव को अर्पित क जाती है। अन्‍त में प्रदक्षिणा और प्रणाम अर्पित किया जाता है। भगवान्‍ शिव को पुष्‍पांजलि देते समय निम्‍नलिखित मंत्र को बोला जाता है।

    सेसंतिका- बकुल- चंपक- पाटलाब्‍जै: पुन्‍नाग- जाति –करवीर- रसालपुष्‍पै:।

    बिल्‍वप्रवाल- तुलसीदल- मालतीभिस्‍त्‍वां पूजयामि जगदीश्‍वर में प्रसीद।।

                          वार के अनुसार प्रदोष का महत्‍व

   यदा त्रयोदशी शुक्‍ला मन्‍दवारेणसंयुता। आरभेत व्रतं तत्र सन्‍तानफलसिद्धये।।

   मन्‍दवारे प्रदोषोsयं दुर्लभ: सर्वदेहिनाम्‍ । तत्रापि दुर्लभस्‍तस्मिन्‍ कृष्‍णपक्षे समागत:।।

कृष्‍णपक्ष में शनिवार के दिन प्रदोष हो तो उसे दुर्लभ माना गया है। शनिप्रदोषव्रत करने से संतानफल की प्राप्ति होती है। यदि प्रदोषव्रत मंगलवार को पड़े तो उसे करने से ऋण का नाश होता है। शुक्रवार से युक्‍त प्रदोषव्रत करने से सौभाग्‍य, स्‍त्री एवं समृद्धि की प्राप्ति होती-

   ऋणनिर्मोचनार्थाय भौमवारेण संयुता। सौभाग्‍यस्‍त्रीसमृद्धश्‍चर्थ शुक्रवारेण संयुता।

रविवार से युक्‍त प्रदोष करने से आयु एवं आरोग्‍य क प्राप्ति होती है। सोमवार के दिन प्रदोषव्रत करने से सत्‍पुत्र की प्राप्ति क कामना से सोमप्रदोष किया जाता है।

     आयुरारोग्‍यसिद्धश्‍चर्थं भनुवाररेण संयुता। न कुले जायते तस्‍य दरिद्री दु:खितोsपि वा ।

                  अपुत्रो लभते पुत्रं वन्‍ध्‍या पुत्रवती भवेत्‍ ।

                 प्रदोषकालिक भगवान्‍ शिव की प्रार्थना

    जयदेव जगन्‍नाथ जय शक्‍डर शाश्‍वत । जय सर्वसुराध्‍यक्ष जय सर्वसुरार्चित ।।१।।

    जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद। जय नित्‍य निराधार जय विश्‍वंभराव्‍य ।।२।।

    जयविश्‍वैकवन्‍देश जय नागेन्‍द्रभूष्‍ण। जय गौरीपते शम्‍भो जय नित्‍यनिरज्‍जन ।।३।।

    जय नाथ कृपासिन्‍धो जय भक्‍तार्तिभज्‍जन। जय दुस्‍तारसंसारसागरोतारण प्रभो ।।४।।

    प्रसीद में महादेव संसारादद्य खिद्यत । सर्वपापक्ष्‍ायं कृत्‍वा रक्ष मां परमेश्‍वर।।५।।

    महादारिद्रच्‍य मग्‍नस्‍य महापापहतस्‍य च। महाशोकनिविष्‍टस्‍य महारोगातुरस्‍य च ।।६।।

    ऋणभारपरीतस्‍य दहा्मानस्‍य कर्मभि:। ग्रहै: प्रपीडच्‍यमानस्‍य प्रसीद मम शक्‍डर ।।७।।

    दरिद्र: प्रार्थयेद्यवं पूजान्‍ते गिरिजापतिम्‍ । अभाग्‍यो वापि राजा वा प्रार्थयेद्येवमश्‍वरम्‍ ।।८।।

    दीर्घमायु: सदारोग्‍यं कोशवृद्धिर्बलोन्‍नति:। ममास्‍तु नित्‍यमानन्‍द: प्रसादात्‍ तव शक्‍डर ।।९।।

    शत्रवश्‍च क्षयं यान्‍तु प्रसीदन्‍तु ममप्रजा:। नश्‍यन्‍तु दस्‍यवो राज्‍ये जना:सन्‍तुनिरापद:।।१०।।

    दुर्भिक्षमारिसन्‍तापा: शमं यान्‍तु महितले। सर्वसस्‍यसमृद्धिश्‍च भूयात्‍सुखमया दिश:।।११।।