उपनयन मुहूर्त

उपनयन मुहूर्त  ( यज्ञोपवीतव्रतबन्‍ध )

उपनयन को व्रतबन्‍ध, यज्ञोपवीत या जनेऊ संस्‍कार भी कहते हैं। इस संस्‍कार से ब्रहा्वि़द्या प्राप्ति का अधिकार बनता है। यह संस्‍कार माघ, फाल्‍गुन, वैशाख, ज्‍येष्‍ठ, आषाढ़ मास में शुक्लपक्ष में किया जाता है। चैत्र मास में केवल ब्राहा्ण बटुकों का उपनयन होता है। इस संस्‍कार को उतरायण में ही किया जाता है। आश्विन, रोहिणी, मृगशीर्ष, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्‍य, श्‍लेषा, तीनों पूर्वा, तीनों उतरा, चित्रा, स्‍वाती, अनुराधा, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती प्रभृति २२ नक्षत्रों में उपनयन संस्‍कार होता है- क्षिप्रध्रुवाहिचरमूलमृ‍दुत्रिपूर्वारौद्रेsर्कविद्गुरूसितेन्‍दुदिने व्रत सत्‍ । मुहूर्तचिन्‍तामणि, संस्‍कारप्रकणरण श्‍लो. ४०। भरणी, कृतिका, ज्‍येष्‍ठा, विशाखा, मघा में उपनयन संस्‍कार वर्जित है। पुनर्वसु नक्षत्र में विप्र बटुकों का उपनयन वर्जित है। पुनर्वसौ कृतो विप्र: संस्कारमर्हति। राजमार्तण्‍ड। रवि, सोम, बुध, गुरू, शुक्र के दिन यह संस्‍कार किया जाता है। शुक्‍लपक्ष में २, ३, ५, १०, ११, १२ तिथि में तथा कृष्‍णपक्ष में मात्र २, ३, ५, तिथि में किया जाता है। उपनयन कर्म पूर्वाह्र एवं मध्‍याह्र में किया जाता है। अपराह्र में करना गर्हित होता है। रोगबाण होने पर यज्ञोपवीत नहीं किया जाता है।

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